विश्वहिंदीजन चैनल को सबस्क्राइब करें और यूजीसी केयर जर्नल, शोध, साहित्य इत्यादि जानकारी पाएँ

कंदील

कंदील प्रभु वरदान सा
सौंदर्य के प्रतिमान सा !
-
हिमांशु होकर दिगभ्रमित, जब खो गया नभ में कहीं,
उस सघन काली रात में, आशा किरण तब जग उठी,
सौम्य किरणे कंदील की , राह को प्रशस्त कर रही,
अमावसी घोर निशा में, तिमिर काट ध्वस्त कर रही !
ज्यों शशांक आसमान का   
सौन्दर्य  के प्रतिमान सा !
-
पवन के साथ साथ झूम, मनमोहक  नृत्य कर रहा,  
अँधियार सकल डसने का, उपकारी कृत्य कर रहा,
झिलमिल अनुपम पहन वस्त्र ,कंदील सज धज कर निखर
चंदा न निकले लाज वश , देखे इसे सज्जित  शिखर !  
आलोक की पहचान  सा
सौन्दर्य  के प्रतिमान सा !
-
आशीष वर्षा पुरखों की , आभामय इसकी हर किरण, 
आलोकित मार्ग कर रहा, माँ लक्ष्मी के वरद चरण, 
उजियारे स्निग्ध रूप में, उल्लास, सुख रोपित करे,
अप्रतिम मनोहारी छटा, अँगना सदन शोभित करे ! 
उत्कर्ष के सोपान सा
सौन्दर्य  के प्रतिमान सा !
-ओम प्रकाश नौटियाल
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
https://www.amazon.in/s?k=om+prakash+nautiyal

कोई टिप्पणी नहीं:

सामग्री के संदर्भ में अपने विचार लिखें-