कंदील
कंदील प्रभु वरदान सा
सौंदर्य के प्रतिमान सा !
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हिमांशु होकर दिगभ्रमित, जब खो गया नभ में कहीं,
उस सघन काली रात में, आशा किरण तब जग उठी,
सौम्य किरणे कंदील की , राह को प्रशस्त कर रही,
अमावसी घोर निशा में, तिमिर काट ध्वस्त कर रही !
ज्यों शशांक आसमान का
सौन्दर्य के प्रतिमान सा !
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पवन के साथ साथ झूम, मनमोहक नृत्य कर रहा,
अँधियार सकल डसने का, उपकारी कृत्य कर रहा,
झिलमिल अनुपम पहन वस्त्र ,कंदील सज धज कर निखर
चंदा न निकले लाज वश , देखे इसे सज्जित शिखर !
आलोक की पहचान सा
सौन्दर्य के प्रतिमान सा !
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आशीष वर्षा पुरखों की , आभामय इसकी हर किरण,
आलोकित मार्ग कर रहा, माँ लक्ष्मी के वरद चरण,
उजियारे स्निग्ध रूप में, उल्लास, सुख रोपित करे,
अप्रतिम मनोहारी छटा, अँगना सदन शोभित करे !
उत्कर्ष के सोपान सा
सौन्दर्य के प्रतिमान सा !
-ओम प्रकाश नौटियाल
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
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