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नए साल तू

सेवक जब बनते स्वामी 
जाती बदल फिर चाल है,
जनता के जीवन में तो
कठिनाइयाँ, कलि काल है,

रोटी के इंतजार में
टूटा हुआ इक थाल है,
और जो  लेकर आ रहे
इक लम्बा नया साल है,

जीने का अधिकार सुलभ 
करना अवश्य बहाल तू,
विनती कि कुछ करना नया 
इस बार नए साल तू !
-ओम प्रकाश नौटियाल
( सर्वाधिकार सुरक्षित)
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