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दन्त कथा - रूट कैनाल

एक था दन्त 
कठोर परिश्रमी,
स्वभाव से संत
-
जीने का जज्बा था
पर आह बहुधा भरता था
पीर से टसकता था
दर्द उसका नगमा था
-
गुफ़ा में निवास था
बंधु बांधवों का साथ था
रात दिन गुफ़ा द्वार 
खुलता था कई कई बार
निरंतर उसे मिलता था 
ठंडे गर्म खट्टे मीठे
कुछ कोमल 
कुछ पत्थर सरीखे
कच्चे ,पके , अधपके 
पदार्थ पीसने का काम
-
खिन्न हो इस बेगारी से 
त्रस्त हो  चाकरी से
गम में घुलने लगा
उसका अस्तित्व पिघलने लगा
और वक्त ऐसा फिर आया
जब वह अपने भीतर 
बना बैठा एक और गुफ़ा
और डूबने लगा
उसके अंघेरों में
-
सिहर उठा दन्तस्वामी
अपनी बेबसी पर,
दिखाया दन्त चिकित्सक को
देख परख तंत्र से संयंत्र से
चिकित्सक बोला, 
"बडा ’डीप्रैशन’ है
जिसे तू अज्ञानवश
मात्र कैविटि समझता है,
मूल में इसके 
खोदनी होगी एक नहर
उस प्रक्रिया को भी हमने दिया है 
एक अति आधुनिक नाम
’रूट कैनाल’
है न बेमिसाल
-
इस नहर से सिचिंत होगी 
नवल दन्त पौध की मूल
जो कर सकेगी
अनवरत सेवा
फ़िर चाहे अमरुद खाओ या मेवा 
-
इस बूढे दाँत को  मैं
उखाड फेंकूगा
अब इसके पास 
देने के लिये कुछ नहीं है
बस पुराने जीवन के 
कुछ दर्दीले कुछ नशीले
कहानी किस्से हैं
जिन्हें यह नाम देता है
अनुभव का
भला आज के 
महा प्रगतिशील
तकनीकी युग में
किसे जरूरत है 
पुराने  पुर्जों की 
दादा के तजुर्बों की
हर कोई रंग में
आधुनिकता के
ऐसा रंगा है
कि उसका नसीब
कृत्रिमता पर टंगा है !!"
-ओम प्रकाश नौटियाल
( सर्वाधिकार सुरक्षित )
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