सावन
फैले धानी खेतों से
सुरभित सुगंध चावल की
महेश्वर पूजने जाती
सरगम खनके पायल की
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छवि चहकी गौरैया की
कब विस्मृत हो पाती है
सहन सूखते दानों को
जो नित चुगने आती थी
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अतीत की वो सब घडियाँ
सदा ही याद आती हैं
जागे से सपनों में जो
मुझे बचपन घुमाती हैं
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मुट्ठी में बंद लगा था
पर वक्त रेत सा फिसला
बदली यादों की बरसी
चला फिर ऐसा सिलसिला
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सुनहरे उन पलों की भी
हमेशा याद आती है
जिन पर विराज सावन में
दामिनी चमचमाती थी
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अनवरत उस जमाने की
बहुत ही याद आती है
जागे से सपनों में जो
मुझे बचपन घुमाती हैं
--ओम प्रकाश नौटियाल
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