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उलट पलट

कफन में लिपट कर
भले मरघट नही गया
जिंदा नहीं  रहा,  यदि 
न इधर पलट सका
न उधर पलट सका

एक जगह चिपक जो
स्वयं में सिकुड़ गया
सिद्धांतो में फँसकर
बिल्कुल अकड़ गया
सीमित से दायरे में
इतना जकड गया
कैसे कहें जीवित, जो
न इधर पलट सका
न  उधर पलट सका

निर्णय न ले सके जो
रुख हवा  का भाँपकर
न कदम बढ़ा सके 
निज भविष्य आँककर
वक्त की सिलवट पर 
करवट न ले सका
उसका अंत तय, जो
न इधर पलट सका
न उधर पलट सका

सिक  सिक उलट पलट कर
बनता है तवा डोसा
सियासत में अधपका वो
देता नहीं जो धोखा
जो दाँव पेंच खेल कर 
कुर्सी से लिपट सका,
उसे  कौन चाहे, जो
न इधर पलट सका
न उधर पलट सका
-ओम प्रकाश नौटियाल
(पूर्व प्रकाशित-सर्वाधिकार सुरक्षित)

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