जस्सी संघा की कविताएँ-
1. अब रिश्ते पहले से नहीं हैं
मगर
ऐसा क्या बदला कि मायने बदल गये ?
रिश्तों
के नाम अब भी वैसे ही हैं,
बस
थोड़े से माडरन हो गये हैं...
मगर
ये आशिक़ और माशूक
सिरफ़
अपने नाम लेकर विदा नहीं हुए
वो
इश्क़ की रूह भी जैसे साथ ले गये !
मां
का सिरफ़ उचारण नहीं बदला
बल्कि
मौम में से मां जैसी खुशबु नहीं आती ..
मगर
ऐसा क्या हुआ
कि
शब्द मायनों का बोझ उठाकर ले गये ?!
अब
रिशतों में ख़तों का इंतज़ार नहीं है ...
अब
ये आँखों से शुरू होकर
किताबों, मुलाक़ातों
या ख़तों में नहीं पलते,
अब
रिश्ते फ़ोन,
फेसबुक या वाटस ऐप
पे
जवान होते हैं ...
अब
हम रिश्ते उतनी देर ही जीते हैं,
जब
तक हम ऑनलाइन हैं ..
अब
हम आसानी से रिश्तों से लौगआउट कर सकते हैं ,
अब
रिशते बरसों तक हमारे साथ नहीं चलते
क्यूंकि
अब रिश्तों की हिस्टरी डिलीट हो सकती है !
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2. वो जो टैटू जैसा कुछ
मेरे
कन्धे पे बनाया
था
तुमने इक दिन
शायद
मेरे नाम के कुछ हिज़्ज़े थे
जो
तुमने उकेरे थे यूँ ही
नहाते
वक़्त भी कई दिन
मैंने
उसे पानी से बचाये रखा
लिबास
की तह में दुबका रहा
कुछ
दिन वो तेरा लिखा
फिर
धीरे धीरे
स्याही
मिट गयी
कच्ची
थी शायद
पर
इक निशाँ रह गया
पक्के
तौर पर
उन
लफ़्ज़ों का
जब
कभी
लफ़्ज़ों
का वो निशाँ
उतर
आता है लहू में
तो
वज़ूद में
घुलने
लगता है वो तेरा लिखा
और
मुझी से
मेरे
होने का
पता
पूछता है …
वो
जो टैटू जैसा कुछ
मेरे
कन्धे पे बनाया
था
तुमने इक दिन
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3. अरेंज मैरिज
तू
अकेला है,
तुझे ये किसी ने बोला
तेरे
पास तेरा ही भेद किसी तीसरे ने खोला,
किसी
चौथे ने फिर नाप तोलकर
एक
दूसरा ढूँढा...
और
वो दूसरा शायद 'अपने पहले' को कहीं
बीच
रास्ते छोड़कर
तेरा
हमसफ़र बनने चला आया ....
पहले
तुम,
सिर्फ़
एक ....!
मगर
पूरे थे ....
मगर
जब से तुम्हारे साथ
तीसरे
और चौथे ने ज़बरदस्ती
दूसरा
चिपका दिया है,
बताओ
तुम दो,
सवा या डेढ़ हुए
या
तुम
भी अब अधूरे हो गए हो
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-जस्सी संघा
ई मेल - sanghajassi@gmail.com
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