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संजय शेफर्ड की कविताएँ


मैं जिस दुनिया का वासी हूं
वहां सिर्फ तीन लोग रहते हैं
एक मैं
एक तुम
एक और तुम
हम तुम परिचित हैं
एक दूसरे से
वर्षों से
पर यह जो एक और तुम हो
उसे मैं तनिक भी नहीं जानता
तुम्हें अचंभित नहीं करना चाहता
पर यह सच है
कि एक पुरुष
जिस स्त्री से प्रेम करता है
उस स्त्री से
कभी प्रेम नहीं करता
बल्कि तुममें सांस ले रही
उस दूसरी
स्त्री से प्रेम करता है
जिसे वह जानता तक नहीं
जो अभी भी
उसकी पहुंच से कोसों दूर है
* * *
दरअसल,
बात सिर्फ पुरुष कि ही नहीं
स्त्रियों की भी है
स्त्रियां भी कभी उस पुरुष से
प्रेम नहीं करती
जिसे कि वह प्रेम करती हैं
बल्कि उसके अंदर के
उस दूसरे
पुरुष से प्रेम करती हैं
जिसे वह जानती तक नहीं
जो अभी भी
उनकी पहुंच से कोसों दूर है
इस तरह एक पुरुष
प्रेम में
सदैव दो स्त्रियों से प्रेम करता है
और एक स्त्री
सदैव दो पुरुषों से
* * *
प्रेम की दुनिया
इतनी ही छोटी है
मेरे, तुम्हारे, और
एक और मेरे-तुम्हारे के अलावा
इसमें कोई चौथा नहीं होता
इसलिए तुम दोनों मिलकर
अपने अपने अंदर के
उस इंसान को बचाकर रखना
जो तुम दोनों को
समान रूप से प्रेम करता है
प्रेम को जिन्दा रखने का
यही एकमात्र
आखिरी विकल्प है मेरी दोस्त !

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