बंधन यह अनुराग का
महका महका पावन पावन
मौसम कितना सावन सावन
महावर ,घेवर झूलों का
रक्षाडोर, करफूलों का
कलरव मधुर राग का
बंधन यह अनुराग का
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स्नेह सिक्त राखी जब आई
भाई की तब सजी कलाई
मन में ममता तरिणी बहे
अश्रु नीर यही कथा कहे
तीर्थ हुआ प्रयाग का
बंधन यह अनुराग का
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काग का छत से अभिनंदन
करे काँव काँव स्न्रेह क्रंदन
प्रतिक्षारत है स्नेह मिलन
राखी अक्षत तिलक चंदन
समय नहीं विराग का
बंधन यह अनुराग का !
-ओम प्रकाश नौटियाल
(सर्वाधिकार सुरक्षित )
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